अमेरिका का एक मनोवैज्ञानिक है उसका नाम है जॉर्डन पीटरसन. उसने 2016 में एक पुस्तक लिखी थी मनोविज्ञान के बारे में. उसके बाद 2018 में एक और पुस्तक आई जिस ने तहलका मचा दिया.
जगह जगह विभिन्न देशों में इस लेखक के इंटरव्यू लिए गए.
बहुत से लोगों ने उसके यूट्यूब चैनल पर यहां तक कहा कि आज वे अगर जिंदा है तो सिर्फ पीटरसन की मोटिवेशनल बातें सुनकर.
पूरे संसार में जगह-जगह घूम कर पीटरसन ने अपनी बात लोगों के सामने रखी.
क्या यह संभव है कि किसी एक व्यक्ति की छोटी छोटी बातें हजारों लोगों के जीवन में बदलाव ला सकती हैं?
यह वास्तव में ही संभव है. एक वाक्या बताता हूं आपको.
दिल्ली के गंगाराम हॉस्पिटल मार्ग पर स्थित है प्रतिष्ठित बाल भारती पब्लिक स्कूल.
मैं लगभग 16 साल तक इसकी पेरेंट्स टीचर एसोसिएशन का ज्वाइंट सेक्रेट्री रहा. स्कूल की विभिन्न गतिविधियों में हमारी एसोसिएशन का लगातार योगदान रहता था.
स्कूल के टीचर और बच्चों के साथ भी लगातार विचारों का आदान प्रदान होता रहता था.
एक बार स्कूल के खेल के मैदान में बने कमरे में, मैं स्पोर्ट्स के टीचर मलिक साहब के साथ बैठा था.
तभी मलिक साहब बाहर गए और दो तीन लड़कों को पकड़ कर लाए.
एक के गाल पर थप्पड़ मारा और कहा बता तूने क्या किया. वह चुप रहा कुछ नहीं बोला. उसको एक और थप्पड़ रसीद किया, फिर भी कुछ नहीं बोला. उसको दो थप्पड़ और मार कर कमरे से बाहर निकाल दिया.
मैं देखकर हैरान था कि किस तरीके से किसी छात्र को पैरंट टीचर एसोसिएशन के ज्वाइंट सेक्रेटरी के सामने कोई टीचर बेदर्दी से थप्पड़ मार सकता है.
मलिक साहब का चेहरा गुस्से के मारे लाल था.
उनकी सांस फूल रही थी.
मैंने उन्हें एक गिलास पानी दिया और कहा की तसल्ली से अपनी सांसो को काबू में कर कर सारी बात बताओ.
उन्होंने कहा यह लड़का बास्केटबॉल के पैनल के ऊपर लटक कर उसे खराब करने की कोशिश कर रहा था. अगर यह टूट जाता तो 20 से ₹25000 का खर्चा बैठ जाता.
मैंने मलिक साहब से कहा बस इतनी सी बात, इसके लिए आपने अपनी जान खतरे में डाल दी.
मलिक साहब हैरान थे कि कैसे उनकी जान खतरे में आ गई.
उन्होंने कहा अशोक जी क्या आपको लगता है यह लड़का स्कूल से बाहर निकल कर मुझे पीट देगा, मैं ऐसे तीन चार लड़कों से अकेले लड़ सकता हूं....
मैंने कहा बिल्कुल नहीं, मुझे इस लड़के से आपको कोई खतरा दिखाई नहीं देता. आपने तो अपने आप से लड़ाई कर ली. वे और भी ज्यादा हैरान हुए.
उन्होंने पूछा वो कैसे?
मैंने उन्हें बताया कि उन का चेहरा लाल हो चुका था, सांस फूल रही थी और उनके हाल बेहाल थे.
ऐसी परिस्थिति में उनके जीवन के साथ कुछ भी हो सकता था.... और उनके घर में दीवार पर उनकी बड़ी सी फोटो लग जाएगी, जिस पर एक हार टंगा होगा. स्कूल वाले परिवार को उनका मुखिया दोबारा नहीं दे पाएंगे. मलिक साहब ने मेरी बात ध्यान से सुनी.... और उस दिन के बाद से उन्होंने बच्चों को पीटना बंद कर दिया.
अपने रिटायरमेंट के भाषण में उन्होंने विशेष रूप से इस बात का उल्लेख किया कि एक व्यक्ति ने किस तरीके से उनके जीवन का दृष्टिकोण बदल दिया.
स्कूल से रिटायरमेंट के बाद उन्होंने सीनियर सिटीजन के खेलकूद के कंपटीशन में बहुत से स्टेट लेवल के पुरस्कार जीते.
ऐसा ही एक और मामला है कि किस तरीके से बहुत से टीचर खास तौर से आर्किटेक्चर में छात्रों को प्रताड़ित करते हैं. उन्हें लगता है कि उनकी अपेक्षाओं पर यह लोग खरे नहीं उतर रहे. गुस्से में आग बबूला होते हैं. और अपनी हेल्थ का बंटाधार करने में कोई कसर नहीं छोड़ते. इन छात्रों पर कोई असर नहीं होता.
CEPT अहमदाबाद से आर्किटेक्चर में graduate मेरी भांजी एक दिल्ली के आर्किटेक्चर कॉलेज के छात्रों के निकम्मे पन् के कारण अपना BP बढ़ाती रहती थी. मेरे से लम्बी बहस के बाद उस का दृष्टिकोण बदल गया. उसका छात्रों के साथ व्यवहार बदल गया...
एक और मजेदार बात देखने में आई है. स्कूल कॉलेजों में जो बैकबेंचर होते हैं वे लोग ज्यादा सफल, ज्यादा संपन्न और ज्यादा सुखी जीवन व्यतीत करते हैं. आर्किटेक्ट की डायरी में कुछ और अनुभव साझा करूंगा आपके साथ डायरी के तीसरे भाग में....
पहले दो भाग उपलब्ध हैं Amazon पर....
Radhika
09-Mar-2023 04:41 PM
Nice
Reply
डॉ. रामबली मिश्र
09-Mar-2023 03:36 PM
बहुत खूब
Reply
shweta soni
23-Jul-2022 11:21 AM
Nice 👍
Reply